किस्सा -ए – जहाँ

किस्सा- ए – जहाँ क्या अर्ज करूं,
मत पूछो दास्तां – ए – हयात,
महामारी के खौफ ने किया जीना दुश्वार,
काम धंधे सब चौपट हुए,
कैसे उतरेगी जीवन की नैया पार,
मंजर हो रहा भयावह धरा का मत पूछो हाल,
कहीं मिल रही धरती कहीं आ रहा सैलाब,
कहीं बरस रहे विकराल बादल,
कहीं सूखा नदियों का आकार,
मानव जीवन का हो रहा अंत की ओर आगाज़।

©Neetu ashwani

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