चाँद और तारों के चमक से,
रोशन है पूर्णिमा की रात।
साथ अपने लेकर आयी,
सुरभित स्वप्नों की सौगात।
चकोर को प्रियतमा से मिलन,
की थी गंभीर जो आस।
आज निश्चय ही पूर्ण होगा,
यह स्वप्न ऐसा है विश्वास।
चाँद और तारों के चमक से,
जगमगा उठा यह सारा संसार।
लगने लगा ऐसे जैसे,
आ गयी हो दीवाली का त्यौहार।
देख यह मनोरम दृश्य,
मानो हृदय भी हर्षा गयी।
चाँद और तारों के चमक,
जगवासियों को भा गयी।
स्वरचित मौलिक रचना
-इन्दु साहू,
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)