जीवन के रंगीन चरण

ज़िन्दगी के इस सफ़र में, प्रतिपल होते रहते बदलाव।
कभी रहता है हँसी-खुशी, तो कभी होते अलगाव।

वक़्त-वक़्त की बात है, आज खुशी हैं तो कहीं है ग़म।
उम्र भर बीत जाएगी, ज़िन्दगी ही पड़ जाएगी कम।

जीवन बाल्यकाल से शुरू हुआ, यह है सबसे हसीन चरण।
मन है चंचल और अस्थिर, उठता है प्रश्नों का कहर।

न किसी का मोह माया और न ही कोई चिंता रहती।
हँसते-खेलते ही बीत जाते, माँ न कुछ करने को कहती।

हँसते-हँसते वक़्त बीत गया, अब आने लगा कुछ ज्ञान।
जैसे-जैसे हम बड़े हुए, करने लग गये सबका सम्मान।

अपने और पराये में भी, फ़र्क़ समझ आने लगा।
दिखावे और सच्चाई की, बातें भी बूझे जाने लगा।

सत्य-झूठ में अंतर, भी आने लगे अब नज़र।
कौन सही और कौन गलत, कौन है अमर अजर।

दुनिया की यह रीत है, जो झुके उसे और झुकाए।
जीवन के हर रंगीन चरण को, चलो मिलकर हसीन बनाए।

ज़िन्दगी का हर चरण, कुछ न कुछ सिखाता है।
जीवनपथ पर चलते जाओ, बात पते की बताता है।

स्वरचित मौलिक रचना

इन्दु साहू,
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)

Leave a comment