नित नवीन नुकूलित पत्त्ते,
मनमोहक मनानंदित करते।
सुखद सुगन्धित सुकोमल,
सदैव सुपरिलक्षित सजते।
कर्म पथ पर सदैव समर्पित,
सुशोभित सुसज्जित वृक्षों पर।
हँसमुख हर्षित हर्षोल्लास हैं,
वसंत ऋतु के अधरों पर।
परोपकार करना हमें बताते,
गिर कर उठना हमें सिखाते।
प्रसन्नचित प्रफुल्लित पथ पर,
अग्रसर होकर हमें दिखाते।
मन मस्तिष्क में निज छाप छोड़,
आ जाते लेकर नया मोड़।
निराश हताश नकारात्मक तोड़,
आस विश्वास सकारात्मक जोड़।
नवजीवित नुकूलित नये पत्त्ते,
मन में भर दें नवप्रीत।
सजीव सुसंस्कृत सुगंधित,
मन को कर दें प्रसन्नचित।।
स्वरचित मौलिक रचना
-इन्दु साहू,
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)