जिंदगी का सफर है क़ुछ इस तरह सा,
ना किसी का साथ और ना किसी का भरोसा।
कौन है साथ और किस पर करें विश्वास,
कभी भी नहीं रखना दोस्तों किसी से भी कोई आस।
जीना भी है अकेले इस वीरान सी दुनिया पर,
सिर्फ साथ देंगें मम्मी पापा किसी भी सफर पर।
थामेंगे हमेशा हाथ और देंगें तुम्हारा साथ,
इसलिए कभी ना करना उनका विश्वासघात।
मानो तुम ये बात मेरी हमेशा सुनना बात उनकी,
जिनसे मिला यह जीवन रहेंगे सदा ऋणी जिनकी।
जीवन के हर सफर में वही देंगे हमारा साथ,
कभी ना तोड़ना उनका जो तुम पर है विश्वास।
बहुत ही कष्ट से मिला है हमको ये प्यारा जीवन,
मम्मी पापा के लिए कर दो अपना समर्पण।
करती हूँ मैं उनको बारम्बार प्रणाम,
जिनसे मिला यह जीवन जिन्होंने दिया मुझे नाम।
धन्य हूँ मैं बहुत जो वो मुझे मिले हैं,
मानो इस जीवन मे चारों तरफ फूल खिलें हैं।
बेटा हूँ मैं उनकी कभी बेटी कहकर नहीं बुलाया,
हमेशा हर पल मुझे बेटा कहकर ही समझाया।
मुझे निभाना है वो हर एक फ़र्ज़ अपना,
करना है पूरा हर वो उन्होंने देखा जो सपना।
करती हूँ प्यार बहुत मैं नहीं है ये कोई कथा,
जीवन सफल है बनाना नहीं करना इसे व्यथा।।
स्वरचित मौलिक रचना
-इन्दु साहू,
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)