एक दिन औरों के लिये
कुर्बान करके आयी वो काली रात
सो रहा था अकेला कर गयी वो घात
समझ नहीं सका मैं ,और
न ही समझ सकी वो
वो गया उजाला, पौ फटी ,किनारा टुटा
सब राज था झुठा
मुझे बनाया शिकार ,बन गयी खुद धन्धुकार।
©अग्यार’बिश्नोई’
नवोदित कवि एवं साहित्य
एक दिन औरों के लिये
कुर्बान करके आयी वो काली रात
सो रहा था अकेला कर गयी वो घात
समझ नहीं सका मैं ,और
न ही समझ सकी वो
वो गया उजाला, पौ फटी ,किनारा टुटा
सब राज था झुठा
मुझे बनाया शिकार ,बन गयी खुद धन्धुकार।
©अग्यार’बिश्नोई’