मुझको वो सबसे,जुदा देखते है,
जब कभी मुझको,”हंसता”देखते है।
जिंदा शख्स को पूछते तक नही हाल,
अब उसके घर का”रस्ता”देखते है।
धन और दौलत को सलाम करती दुनिया,
मुफ़लिस को लोग अब कहां देखते है।
रोता रहा एक बच्चा बिछड़कर मां से,
हुजूम जमा कर लोग,बस,”तमाशा” देखते है।
हर छोटा इंसान जानवर लगता,उनको,
जो पत्थरों में “खुदा”को देखते है।
कब तलक,पूछेगा,”प्रमोद”कोई आखिर तुमको,
मतलब सब लोग “अपना अपना” देखते है।
©प्रमोद
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