बेरोजगार
बन घर के भार
पाते हैं सदा
अपनों से दुत्कार
सगे संबंधी
करते हैं किनारा
टूट जाता है
देखो आत्मविश्वास
हीन भावना
ग्रसित हो मानव
क्यों कर जाता
नष्ट स्वयं संसार
दृढ़ निश्चय
सफलता की कुंजी
करे स्वरोजगार l
©भूपेन्द्र कुमार “भूपी”
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