काँटे नहीं फूल तैयार करो
नफ़रत नहीं इश्क़ पैदा करो
अक्सर मोहब्बत की राह में
फूल नहीं काँटे हज़ार मिलते
उन काँटों को हँसकर है हटाना
बेशुमार मोहब्बत को ही है पाना
नफ़रत की ज़हर को निकाल कर
गुलिस्ता इश्क़ का बनाना दिल पर
मोहब्बत की राह में यूँ ही चलकर
क्यों न लें जाए दुनिया को नई राह पर
©श्रीराज मेनन
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