सब सहती भूल जाती वजूद अपना,
तुझे भी हक़ है दुनिया में मुस्कराने का।
हारना न हिम्मत मुट्ठी में तेरे दुनिया,
तुझे भी हक़ है अपने पर उड़ाने का।
कोमल है भावनाएं क़दमों में पड़े अंगारे,
तुझे भी हक़ है क़दम से क़दम मिलाने का।
रखना याद हरदम तूँ भी गुल चमन का,
तुझे भी हक़ है इज्ज़त से सर
उठाने का।
पूनम सिंह(प्र.अ.)
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