तेरी यादे कभी कभी बहुत कुछ कह देती थी
मेरे उन आँसुओं को क्या पता था …..फिर से
यूँ तुमसे किसी मोड़ पर मुलाकात हो जायेगी
तेरे जाने से लेकर तेरे आने के बाद…अब तक
कुछ कुछ सम्भाली थी ये टुकड़ो में बिख़री जिन्दगी
तेरे फिर आने से फिर से टुकड़ो में बिख़र जायेगी
उलझन भी है और खुशी भी है क्या मैं करू अब
तेरे फिर आने के बाद उथल पुथल सी मची हुई है
न जाने किस और ये जिन्दगी अब चल के जाएगी
मेरी मुहब्बत रूस्वा हर बार हुई तेरे इस आने जाने में
अब तो एक ठहराव दे दो , छोड़ो ये आना जाना अब
चार दिन की जिन्दगी है , आने जाने मे ही बीत जाएगी
मानसिंह सुथार
श्रीगंगानगर , राजस्थान
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