अनन्त से अनन्त को पाने चले हो
आज को भूला,कल को पाने चले हो
मैं साया बन के साथ चलने को तैयार हूँ
क्यूँ एक याद बन के मन को भरमाने चले हो
एक रिश्ता हमारा भी है कोई नाम दे दो
सोचा के देखो ,क्या क्या खोने चले हो
मेरी हर धड़कन में तुम्हारा वास है ,सच है
लौट आओ , यूँ मझधार में छोड़ कहाँ चले हो
मानसिंह सुथार
श्रीगंगानगर , राजस्थान
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