खेल….प्यार का /सिया

“तुम संग थे तो रंगीन थी दुनिया यह,
बिन तेरे सब बेरंग सा लगता है।

हसीं थे दिन और रात वो,
जो गुजरी संग तुम्हारे।
अब तो जीवन बेमना सा लगता है।

अधूरी सी हो गई है हमारी प्रेम कहानी,
अधूरा तेरे बिन यह जीवन लगता है।

“खेल-खेल” में तुम कैसे आ गए मेरे करीब,
अब तो, अब तो वो वक्त सपना सा लगता है।

काटनी तो है जैसे भी यह जिंदगी,
अब प्यार तुम्हारा जीने का सहारा लगता है।

कटेगी तुम्हारे प्यार के सहारे यह जिंदगी,
सांसों में भी तू ही समाया लगता है।

शिद्दत से चाहा है और चाहती रहूंगी तुम्हें,
तेरी आंखों का नूर मेरी आंखों में समाया लगता है।

जहां भी रहना खुश रहना,
मेरा यह दिल तुम्हारे लिए यही दुआ करता है”।

©सिया

हमें विश्वास है कि हमारे रचनाकार स्वरचित रचनाएँ ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे प्रिय रचनाकार व पाठक यह दावा भी करते है कि उनके द्वारा भेजी रचना स्वरचित है। 

आपकी रचनात्मकता को काग़द देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए यहाँ क्लिक करे