गम ए जुदाई / सिया

“इश्क में टूटे दिल के जख्मों की हम,
दवा न कर सके।

बहुत तड़पे बहुत रोए……
और खुद के लिए दुआ भी न कर सके।

क्या थी खता हमारी बस इश्क ही तो किया था,
बेहद, बेहिसाब, बेशुमार ही तो किया था।

पता नहीं क्यों ऐसे रोग को खुद पर सवार कर बैठे,
खुद को कर बर्बाद खुद का हाल-बेहाल कर बैठे।

मिली जो यह सजा, हाए!! यह हम विचार क्यों कर बैठे,
जिस मर्ज की दवा नहीं थी……

©सिया

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