दहेज / पूनम सिंह

है सुशील संस्कारी दुहिता
नहीं बन सकी महलों की रानी
ऐ दहेज! सब तेरी कारस्तानी।

कैसा सभ्य समाज का हाल
कितनी बेटियां गईं काल के गाल
कितनों की हुई पटाक्षेप कहानी
ऐ दहेज! सब तेरी कारस्तानी।

है यह एक भयानक कोढ़
नहीं रुक रहा लगी है होड़
युवाओं की हुई बन्द ज़ुबानी
ऐ दहेज! सब तेरी कारस्तानी।

अपना सोच बदलना होगा
जड़ें पुरानी कुचलना होगा
देना होगा समाज को निशानी
ऐ दहेज! सब तेरी कारस्तानी।

बेटियों ने हैं अब पंख फहराए
दहेज दानव की बदलेंगी हवाएं
हर घर में जन्मेगी झाँसी की रानी
ऐ दहेज! सब तेरी कारस्तानी।

-पूनम सिंह (प्र.अ.)
प्रतापगढ़, उत्तरप्रदेश

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