मनुष्य की आखिरी मंजिल शून्य से मिलकर,
शून्य रूप हो जाना है,
जो आनंद सच्चिदानंद परमेश्वर से जुड़ कर उनका ध्यान,
करने में है, वो संसारिक पदार्थों से जुड़ कर नहीं मिलता है।
ईश्वर से जुड़कर उन के गुण जो हमारे भीतर पनपने,
लगते है, वो किसी और से जुड़ने नहीं आ पाते।
कहा जाता है कि “जैसी संगत वैसी रंगत”।
ईश्वर का संग सब संगो से सर्वोपरि है”।
©सिया
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