आज की नारी आत्मनिर्भर है
न उसके मन मे संकोच ,न कोई डर है
अंतरिक्ष मे वो उड़ान भरती है
हर रोज नये आयाम हासिल करती है
दोहरी जिम्मेदारी वहन करती है
कभी जवानो संग सरहद पे लडती है
कभी वीर बहूटी सी आकाश मे उड़ती है
वैज्ञानिक बन नयी नयी खोजो से जुड़ती है
आगे कदम बढ़ाकर पीछे कभी न मुड़ती है
कभी मंत्री बन देश चलाती है
तो कभी खेल मे जीत के मैडल लाती है
कभी ड्राइवर बन रेल दौड़ाती है
आज की नारी तुझे सलाम
तेरे हर रूप को हम सबका प्रणाम
©सविता
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