चलती है बस चलती है
चलती है बस चलती है
हो कर्म पथ पर गतिमान
चलती है बस चलती है
कभी पूछा नही किसी ने उससे
वह भी क्या कभी थकती है ?
बच्चे बूढ़ो और पति का रखने में ख्याल
अकेले दिन रात बस वही खटती है
पकवान बनाने में जल जाये हाथ
या काया बुखार से तपती है
वह तनिक भी नही सिसकती है
चलती है बस चलती है
चलती है बस चलती है
करके घंटो काम ,थककर होती चूर जब
अपने ही लोगों के बीच सुकून आराम के लिए तरसती है
होता कहाँ यह भी नसीब उसको
पुनः पति, ससुर और परिवार की सेवा हेतु नकलती है
आराम कहाँ जीवन में उसके
वह तो स्त्री है
जो चलती है बस चलती है
चलती है बस चलती है
©अन्नू अग्रहरि
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