नारी / प्रदीप

जीवन के पहले दिन से ही
कष्टों का घूंट पिये सारी
जिसका जीवन ही कष्ट सरीखा
ऐसी होती है नारी

खुद तपती है ज्वाला में पर
खुशियां देती सबको सारी
जिसका जीवन ही कष्ट सरीखा
ऐसी होती है नारी

जब रहती है नन्ही बेटी
घर आँगन भर जाती सारी
जिसका जीवन ही कष्ट सरीखा
ऐसी होती है नारी

बाबुल का छोड़ जो गलियारा
निभाती सारी जो जिम्मेदारी
जिसका जीवन ही कष्ट सरीखा
ऐसी होती है नारी

माता का फर्ज निभाती जो
सम्बन्धो का कर्ज चूकाती जो
मुश्किल हालातों के मोड़ पर
चलती है,घबराती ना जो
हर रिश्ते को संभाल जो
सँजोती है बारी बारी
जिसका जीवन ही कष्ट सरीखा
ऐसी होती है नारी

जिसने चांद पर पांव जमाया
जिसने मेडल है दिलवाया
जिसने अपने कर्मो से
भारत का गौरव है चमकाया
जिसको सारी दुनिया नमन करे पारी पारी
जिसका जीवन ही कष्ट सरीखा
ऐसी होती है नारी

©प्रदीप

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