सहती लाखों पीड़ा ये / रवि श्रीवास्तव

सहती लाखों पीड़ा ये, उठाती हजारों कष्ट हैं,
फिर भी मुस्कुराती है ये नारी ,
दे कर जन्म नवजात शिशु को ये,
माँ का है फर्ज निभाती,
पाल-पोस कर बड़ा हमे है करती,
अच्छे संस्कार हमे है सिखाती,
कभी माँ ,कभी बहन, तो कभी बहू-बेटियाँ है कहलाती,
फिर भी जन्म से बेटियाँ दूसरे घर का है कहलाती…

अजीब कशमश मे फसे है मेरे नैना,
अरे कोई तो मानों बेटियों को अपना,
मत तोलो इनको रिस्तों के भवर में ,
फूल है हर आँगन की ये बेटियाँ,
इनको न पराया धन समझो…
छोड़ अपनी खुशियों को दुख मे हमारा साथ है निभाती,
दिल मे हजारों दर्द लिए चेहरे पे मुस्कान है लाती,
वो स्त्री बन हमारे परिवार को भी है संभालती,
हमे खुशियाँ और प्यार दिखा कर ,अपने आंखो के है आँसू छुपाती,
मत कहो इन्हे पराया धन ऐ मेरे दोस्त ,
ये बेटियाँ ही है जो हमारे घर को है स्वर्ग बनाती …..
मत कर ऐ जालिम जूल्म इन बेटियों पर,
इनके कोख ने ही तुझे जन्म है दिया,
आज घमंड है तुझे मर्द होने का,
कल पछतावे के सिवा कुछ और न हाथ आयेगा…


© Ravi Shrivastava

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