बंद करो माफी मांगना और गीड़गीड़ाना,
अब वक्त आ गया है कहने का बिना पछतावे और शर्म के-
कि हाँ, ये मैने किया है तो क्या,
वक्त आ गया है परछाई से उठकर सामने आने का,
वक्त आ गया है उन तमाम सवालों के जवाब देने का जिनको सुनकर मैं अक्सर चुप्पी साध लेती थी,
वक्त आ गया है उन तमाम लोगों को कटघरे में लाने का,
जिनकी वजह से मैं खुदको कभी कटघरे में खड़ा पाती थी,
वक्त आ गया है सर ऊँचा कर बेखौफ सड़क पर निकल जाने का,
वक्त आ गया है कट्टर मान्यताओं को रोंदकर आगे निकल जाने का,
वक्त आ गया है एक पंछी बन इस आजाद गगन में उड़ जाने का।
©मानसी
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