हैं कैसी उलझन बोलो तो /भूपेन्द्र कुमार “भूपी”

जीवनपथ हैं संघर्ष अनेक,
पग पग बाधाओं के रूप अनेक,
उलझाना चाहे जो हर पल,
उन शूलों के हैं चुभन अनेक l

तो क्या ड़रकर पीछे हट लूँ ?
सपनें जो देखे मिटने दूँ ?
आत्मबल को यूँ टूटने दूँ ?
नर होकर निराश मन कर लूँ ?

ना ना, ये मुझसे ना होगा,
कर सकता नहीं निज से धोखा,
चाहे बाधाओं ने कितना रोका,
छोड़ूँगा नहीं मैं ये मौका l

चुभते काँटें हों चुभने दो,
बढ़ चले कदम अब देखो तो,
फिर क्यों हलचल मची सोचो तो,
हैं कैसी उलझन बोलो तो l

©भूपेन्द्र कुमार “भूपी”
नई दिल्ली

हमें विश्वास है कि हमारे रचनाकार स्वरचित रचनाएँ ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे प्रिय रचनाकार व पाठक यह दावा भी करते है कि उनके द्वारा भेजी रचना स्वरचित है। 

आपकी रचनात्मकता को काग़द देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए यहाँ क्लिक करे