जीवनपथ हैं संघर्ष अनेक,
पग पग बाधाओं के रूप अनेक,
उलझाना चाहे जो हर पल,
उन शूलों के हैं चुभन अनेक l
तो क्या ड़रकर पीछे हट लूँ ?
सपनें जो देखे मिटने दूँ ?
आत्मबल को यूँ टूटने दूँ ?
नर होकर निराश मन कर लूँ ?
ना ना, ये मुझसे ना होगा,
कर सकता नहीं निज से धोखा,
चाहे बाधाओं ने कितना रोका,
छोड़ूँगा नहीं मैं ये मौका l
चुभते काँटें हों चुभने दो,
बढ़ चले कदम अब देखो तो,
फिर क्यों हलचल मची सोचो तो,
हैं कैसी उलझन बोलो तो l
©भूपेन्द्र कुमार “भूपी”
नई दिल्ली
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