है कैसी उलझन तुम कुछ बोलो ना
यूं चुप रहकर रिश्तों को तोड़ा नहीं करते
तुम आओ तो मेरे पास बस उलझन को सुलझाओ ना
यूं खुद को नजरंदाज करके जिंदगी को जिया नहीं करते
है कैसी उलझन तुम कुछ तो बोलो ना
कभी बैठो मेरे साथ कुछ पल तो साथ बिताओ ना
यूं दूरियों से बेवजह दोस्ती का हाथ बढ़ाया नहीं करते
है कैसी उलझन तुम कुछ तो बोलो ना
अकेलेपन में ना रहो अपनों की महफिल सजाओ ना
यूं तन्हाइयों में खुद का आशियाना बनाया नहीं करते
है कैसी उलझन तुम कुछ तो बोलो ना
©सैमी
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