हैं कैसी उलझन बोलो तो / हेमा

आज आँखें क्यों तुम्हारी भर आई हैं,
चाँद सा चेहरे पर उदासी क्यों छाई हैं,
ज़िद छोड़ो,हर चुप्पी को तुम तोड़ो तो,
हैं कैसी उलझन बोलो तो…।

अरे! किसने तुमको इतना तड़पाया हैं,
हँसी को इन होठों से किसने हटाया हैं,
कसम है तुम्हें,चुप्पी के ताले को तोड़ो तो,
हैं कैसी उलझन बोलो तो…।

फिर पहले जैसा हंसों खिलखिलाओ,
गीत खुशियों वाला कोई गुनगुनाओ,
सुरो के मीठी रस को तुम घोलो तो,
हैं कैसी उलझन बोलो तो…।

तेरे पीड़ा को ये दीवाना सह ना पाएगा,
नम आँखों को देख तेरा,ये मर जाएगा,
कह कर मुझे परेशानियों को तोड़ो तो,
हैं कैसी उलझन बोलो तो…।


©हेमा

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