जिन्दगी का आभार/मानसिंह सुथार

एक सुकून और इत्मिनान सा है हर तरफ
शुक्रिया ऐ जिन्दगी ऐसी ही चाहत की थी मैंने |

आँख़ों में बड़े बड़े सपने लिए आँख़ें खोली थी
एक कतरे को सागर बनाने की चाहत की थी मैंने |

माँ के आँचल का रहे साथ सदा और पिता का हाथ
माँ वसुन्धरा की गोद की सदा चाहत की थी मैंने |

एक परिवार हो छोटा सा , सच्चे सुख के साथी मिले
सब मिला , बहुत मिला जिसकी चाहत की थी मैंने |

माया मिली सुखी काया मिली , मिली वंश को गति
चारो आश्रम सुख से बीते , सुख की चाहत की थी मैंने |

उगता सूरज ढ़लता भी है , मुझे भी एक दिन ढ़लना है
हर चाहत की तरह , सुकून भरी मौत की चाहत की थी मैंने |

संतुष्ट है मन शुक्रिया ऐ जिन्दगी , सब कुछ दिया है तुने
मान सम्मान ,स्वाभिमान , जिस जिस की चाहत की थी मैंने |मानसिंह सुथार
श्रीगंगानगर , राजस्थान

©मानसिंह सुथार
श्रीगंगानगर , राजस्थान

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