ज़िन्दगी तो पहेली हैं
कभी कभी सहेली हैं।।
कभी हंसाती कभी रुलाती
जाने क्या क्या पल पल सिखलाती।।
मासूम को भी जीना सिखाती
वक्त के थपेड़ों से बचना बताती।।
देख कर रंग तेरे अलग अलग
रह जाता हर आदमी दंग।।
शुक्रिया तेरी रहमतों का
शुक्रिया तेरी नेमतों का।।
शुक्रिया ज़िन्दगी तेरा हर कदम
की तूने बना दिया सबको परिपक्व।।
तकलीफ-ऐ-शिद्दत में भी जीना सीखा दिया
की ज़िंदगी शुक्रिया तेरा की तूने
ज़िन्दगी का मतलब सीखा दिया।।
अब चाहे हो रास्ते दुश्वार तेरे
शुक्रिया तेरा की तूने
ज़िन्दगी का मकसद बता दिया।।
©Ajit kaur
दरभंगा बिहार
हमें विश्वास है कि हमारे रचनाकार स्वरचित रचनाएँ ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे प्रिय रचनाकार व पाठक यह दावा भी करते है कि उनके द्वारा भेजी रचना स्वरचित है।
आपकी रचनात्मकता को काग़द देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए यहाँ क्लिक करे।