एक पल ना थमा
दौड़ता गया तू,
दौलत की चाह में
अपनों को छोड़ता गया तू।
कभी खुद के पास बैठ
झांक मन के अंदर,
क्या हुआ हासिल
तुझे बनकर सिकंदर।
जमाने को पा लेने की
तेरी चाह ले डूबी,
तुझे तेरे ही गुलामों की
आह ले डूबी।
हां मानता हूं तेरे नाम से
सारी दुनिया भयभीत हुई,
मगर तू बता
तू हार गया या तेरी जीत हुई?
©छोटेलाल
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