रोटियाँ /अरविंद यादव

किसी की बड़ी तो किसी की छोटी है रोटियाँ
भूखा सो गया कोई,किसी ने फेकी है रोटियाँ

भरा पेट हो तो , किस काम की है ये , रोटियाँ
समझाया भूख ने , कितने काम की है रोटियाँ

रिश्तों ने तो चौके पर , सेकी हैं रोटियाँ
साजिश थी जिसने मौके पर , सेकी थी रोटियां

घर छोड़ने पर अक्सर मजबूर करती है रोटियाँ
बिछड़कर याद आती है माँ के हांथों की रोटियाँ

भूख दौलत की , मिटा सकती नहीं ये रोटियाँ
ढीठ हो BV अरविंद पकानी पड़ती है रोटियाँ

©अरविंद यादव
दिल्ली – 44

हमें विश्वास है कि हमारे रचनाकार स्वरचित रचनाएँ ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे प्रिय रचनाकार व पाठक यह दावा भी करते है कि उनके द्वारा भेजी रचना स्वरचित है। 

आपकी रचनात्मकता को काग़द देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए यहाँ क्लिक करे