कभी कभी यूँ भी होता है,
कही कोई मिल जाता है,
अजनबी होकर भी अपना सा लगता है,
साया भी उसका सायबान सा लगता है,
बरसो के फासले पल मे तय करता है,
कुछ ही लम्हों का ये सफर लगता है।
कभी कभी यूँ भी होता है,
दामन भर कर भी खुशियों से खाली लगता है,
ये खजाना तो बस दूसरो मे बट जाता है,
रहे भले ही दामन अपना खाली,
किसी का भरा आँचल देख मन मुस्काता है।
कभी कभी यूँ भी होता है,
जो दूर हो बहुत पास वो लगता है,
कुर्बत मे भी मिलों का फासला लगता है,
अंधेरा रोशन राहों मे भी लगता है,
दिल हो बेचैन तो,
जग सारा शमशान लगता है।
कभी कभी यूँ भी होता है,
अनचाही उम्मीदों के पीछे,
मन यूँ ही दौड़ने लगता है,
छोड़ कर हदें अपनी,
मन की सीमा रेखा तोड़ने लगता है।
कभी कभी यूँ भी होता है,
खुशियों के लिए आँचल कम पड़ता है,
बनती है कही तकदीर,
तो कही मुकद्दर बिघड़ता है,
ये चक्कर तो जीवन का ऐसे ही चलता है।
कभी कभी यूँ भी होता है,
इंसान जीतेजी मर जाता है,
तो कोई मर कर भी जावेदा होता है,
कभी कभी यूँ भी होता है….
©झाहिदा पाठन
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