आज बदल रहा समाज
पर क्या सच में ?
तकनीकी उन्नति, विदेशीक मानसिकता को समाज का बदलना कहा जा सकता है ?
यहाँ दो चेहरे साथ लेकर चलते लोग,
खुदगर्जी को ऊपर रख,इंसानियत को भुल जाते लोग,
क्या नहीं आज भी लडकियों के कपडों को देखते ही धड़ल्ले से “बेहयाई”, “बदचलन” का टैग लगाते लोग ?
क्या नहीं आज भी “बेटी हुई है “सुनकर ,
खुदबखुद मुरझाते लोग ?
बेटों की होड में ना जाने कितनी बेटियाँ जलाते लोग,
क्या नहीं समाज के दो पहलु खुदबखुद बनाते लोग ?
सतरंगी रंगों में ढकी असमानता को जुठलाते लोग,
समाज बदल रहा है,सोच बदल रही है,बस कहने को कह जाते लोग।
खुदकी नजरों में गिरने को भी हँसी में टाल जाते लोग,
हमारे समाज ने सब चीजें विदेशों से अपनाई है,
क्या इतनी कमजोर है भारतीय मानसिकता,
उसकी उन्नति बनती जा रही किसी की परछाई है ?
©मानसी
राज्य-दिल्ली
हमें विश्वास है कि हमारे रचनाकार स्वरचित रचनाएँ ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे प्रिय रचनाकार व पाठक यह दावा भी करते है कि उनके द्वारा भेजी रचना स्वरचित है।
आपकी रचनात्मकता को काग़द देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए यहाँ क्लिक करे।