पहचान होनी चाहिए / कुमार अविनाश केसर

खून दौड़ता है या पानी, पहचान होनी चाहिए,
सौदेबाजी की, रिश्ते में , पहचान होनी चाहिए।

दरिया में पानी भला ठहरता है कब तलक,
आदमी को, आदमी की पहचान होनी चाहिए।

आँधियाँ कब तक खुश होंगी उजाड़ कर आशियाना,
घर को अपनी दीवार की पहचान होनी चाहिए।

कौन है तेरा, कौन बेगाना, कौन है कितना पानी में?
बात बहुत है, बातों की पहचान होनी चाहिए।

जिन पैरों पर खड़ा है तेरा चलता जिस्म रूहानी ‘केसर’
उन पैरों को, कदमों की पहचान होनी चाहिए।

©कवि कुमार अविनाश

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