जैसे है जरूरत हर नदी को समंदर की,
जैसे है जरूरत हर गोपी को कृष्ण की,
जैसे है जरूरत हर प्रेमी को प्रेमिका की,
जैसे है जरूरत हर मदहोश को मधुशाला की, जैसे है जरूरत हर आंचल को संतान की, जैसे है जरूरत हर गुरु को शिष्य की, जैसे है जरूरत हर कंधे को सहारे की, जैसे है जरूरत हर ईश्वर को भक्त की,
कुछ ऐसे ही है , जरूरत एक कागज़ को लिखने वाले की।
©अनुराग उपाध्याय ।
राज्य – मध्य प्रदेश ।
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