उँकेरूँ क्या कागज़ पर ,
कागज़ और कलम से ,
अनबन हुई पड़ी है मेरी ।
अनबन कुछ ख़ास नहीं बस
दोनों मुझसे रूठे है ,
पूछते है , कि आज कल तुम लिखतें ही नहीं ,
आज कल तुम हमसे मिलतें ही नही ।
क्या हुई गलती हमसे ,जो तुम
हमे देखते ही नज़र अंदाज़ कर देते हो , हम बात करने की कोशिश करतें है ,
तो तुम बोलते ही नही ।
मैं क्या जवाब देता कागज़ और कलम को ,कह दिया
कि मुझसे ही मेरी अनबन है हुई पड़ी ,
मैं मुझमे आज कल हुई नहीं ।
क्या तुम दोनों मेरी मुझसे सुलह करवा सकतें हो ।
सुलह तो करवा दें हम ,
मगर हमसे दोस्ती फिर करनी होगी ,क्योकि हम ही तुम्हे आगे पहुँचा सकतें है ।
हम ही तुम्हारे विचारों को
जगह दे सकतें है ।
©सुशील कुमार जाटव ‘सुशील’
मन्दसौर
(म.प्र.)
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