[१]
वो दिल में छुपा, काग़द पर उकेर मोहसिन को थमाते।
आंसुओं की परवाह कर, काग़द की रूमाल से सुखाते।
[२]
माना प्यार नहीं बिकता काग़द से, ₹ से आशियाने बनाते।
दस्तूर है जरुरत, रोटी खातिर काग़द मेहनतकश ले आते।।
[३]
तराज़ू अरमान तौले, कौन है के काग़द की तस्वीर छू सके।
दिल की आवाज़ कैद है, पैग़ाम लिख खत पहुंचा सके।।
[४]
पत्थर पर लिखते थे कभी, ताम्र पत्र पर भी पत्र लिखे।
भोजपत्र चलते थे कभी, क़लम क़ागद पर चलाना सीखें।।
[५]
कैंची उठा काग़द के फ़ूलों का हार बना पहना दो।
काग़द की नांव चला आंगन में मन भले बहला दो।।
डॉ. कवि कु. निर्मल_✍️
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