कागज़ को पढ़ना जरूर/हेमा भट्टरोय


बंद किताबों के कागज़ में कुछ अल्फ़ाज़ो को हमने बिखेरा है,
हर एक शब्दों को जोड़कर अपने जज़्बातों को रखा है।

मेरे लबों की हर ख़ामोशियां ही, अब बन गया है मेरा गुरूर,
मेरे दिल के उन पन्नों को तुम वक़्त मिले तो पढ़ना ज़रूर।

ग़ज़लों के रूप में बिखरे हुए उन पन्नों पर, मेरे रातों की नींदें हैं,
बेवजह हर वक़्त बहती हुई इन आँखों के आंसूओं की बूंदे है।

कभी फ़ुर्सत में आकर देख जाना, मेरे लिखे हुए हर दस्तूर,
मेरे दिल के उन पन्नों को तुम वक़्त मिले तो पढ़ना ज़रूर।


©हेमा

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