जैसे छूआ करती है मौज हर पल मोहब्बत में साहिल को।
ऐसे ले रक्खा है उसकी चाहत ने गिरफ्त में मेरे दिल को।
मुझे अज़ीज़ बहुत ये दासता उसके इश्क़ के कैदखाने की।
मेरी इल्तज़ा उम्र भर ज़मानत न मिले मुझ मुवक्किल को।
© Ashish Kumar bhatt
नवोदित कवि एवं साहित्य
जैसे छूआ करती है मौज हर पल मोहब्बत में साहिल को।
ऐसे ले रक्खा है उसकी चाहत ने गिरफ्त में मेरे दिल को।
मुझे अज़ीज़ बहुत ये दासता उसके इश्क़ के कैदखाने की।
मेरी इल्तज़ा उम्र भर ज़मानत न मिले मुझ मुवक्किल को।
© Ashish Kumar bhatt