कविता का होना समझ आया/ नमिता गुप्ता “मनसी

जीवन के झंझावातों को पार करते हुए..
तेरे-मेरे एहसासों को पढ़ते हुए..
मुझे
“कविता का होना” समझ आया !!

इसलिए चाहती हूं
निकलना
कहीं न पहुंचे हुए रास्तों पर
और भीग जाऊं अचानक आई हुई बारिश में ,
लौट आऊं..खुद को खोकर कहीं
कोई मनचाही कविता गुनगुनाते हुए !!

शुक्रिया जिंदगी
यूं “मनसी” की जिंदगी बदल जाने के लिए !!

©नमिता गुप्ता “मनसी”
मेरठ, उत्तर प्रदेश

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