बदलता समाज / राखी

जहां बोलना चाहिए वहां खामोश रहो
चलन है यही अब तथाकथित नव समाज का

यहां चेहरा देखकर बदल जाते हैं सच
यही असली चेहरा है, बदलते समाज का

कदम खुद ब खुद बढ़ जाते हैं भीड़ की तरफ
चलो देखें क्या नया मामला है आज का

मदद के लिए कोई जो पुकारे भी कभी
उसी वक्त आता है ख्याल अपने काज का

जो धिक्कारते है जो समाज को,,उनसे पूछो
बनाता बुरा कौन है चेहरा बुरा ,इस समाज का

इसी जुमले के साथ कि, रखना बात अपने तक
पता रोज़ बदलता रहता है ,हर एक राज का

मुफ्तखोरी रगों में भरते जाओ लोगों की
अगर करना है इंतज़ाम स्वयं के ताज का

छिपाने लगे हैं बहुत कुछ नकाबो में सभी
गुजरे समय में परदा ,गहना था लाज का

रकम मोटी होती गई जरूरी डिग्री में
महंगा बाज़ार भी सजने लगा इलाज का


©राखी की क़लम से
इंदौर MP

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