जिन्दगी हैं तो , जनाजा भी तो मुकरर हैं
आए हैं रोते हुए हम, तो क्या जाऐंगे हँसकर
जमाना खुश हुआ था , जब आए थे हम
शब्दों में छोड़ जाऐंगे यादें , सबको अपना बनाकर
पथरीली ,उबड़ खाबड़ और बंजर सी ये जिन्दगी
काँटे नहीं फूल तैयार करो ,महक उठे ख़ुशबू बनकर
ये जम़ी फिर किसको चाहिए , मुझे तो नहीं,कभी नहीं
तमन्ना है मिल जाऊ भवसागर में, बस एक बून्द बनकर
मानसिंह सुथार
श्रीगंगानगर ,राजस्थान
©मानसिंह सुथार
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